रविवार, 9 फ़रवरी 2020

दरवाजे


दरवजे की तराफ टकटकी लगाये देखता हु मै
 तुम होगे बार हर आहाट पे सोचता हू मैं

कु छ सिकयात न करुंगा तुम से सच कहेता हु मैं
बस आ  इक बार बड़ तन्हां रेहता हु मैं

हर किसी को फर्क है, तुम्हे खोने का,
 पर तुमारी कमी को हर पल महसूस करता हु मै

बस दरवाजे पर टकटकी लगाए देखता हूं मैं,


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