दरवजे की तराफ टकटकी लगाये देखता हु मै
तुम होगे बार हर आहाट पे सोचता हू मैं
कु छ सिकयात न करुंगा तुम से सच कहेता हु मैं
बस आ इक बार बड़ तन्हां रेहता हु मैं
हर किसी को फर्क है, तुम्हे खोने का,
पर तुमारी कमी को हर पल महसूस करता हु मै
बस दरवाजे पर टकटकी लगाए देखता हूं मैं,
तुम होगे बार हर आहाट पे सोचता हू मैं
कु छ सिकयात न करुंगा तुम से सच कहेता हु मैं
बस आ इक बार बड़ तन्हां रेहता हु मैं
हर किसी को फर्क है, तुम्हे खोने का,
पर तुमारी कमी को हर पल महसूस करता हु मै
बस दरवाजे पर टकटकी लगाए देखता हूं मैं,
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