मंगलवार, 13 जुलाई 2021

शायरी वक्त नहीं ये देखने का


 वक्त नहीं ये देखने का कोन बुरा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।
खुदा ने मौका दीया है खुदको नेक बनाने का
फिर नही आएगा दिन कुछ कर जाने का।
देखलो एक दुसरे को ना देखो घूर घूर के
वक्त बुरा है ले ना जाए सब कुछ ओड के।
इस बुरे वक्त के बैरियों का अंजाम भी बुरा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।
नाराज़ नहीं है किसी बस भी कुछ डरा डरा है
मेंरे घर के सामने जो घर था वो खाली पड़ा है।
मुस्कुरा कर एक बुजुर्ग हाथ हिलाया करते थे
कुछ चहेरे दिखते नही जिन्हे अपना बताए करते थे।
वक्त की नज़ाकत को समझो ये मशवरा भी बूढ़ा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।


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