रविवार, 20 जून 2021

शायरी माटी का पुतला हूं


 समझ जाता हूं प्यार से मुझसे लडने की ज़रूरत नही।

माटी का पुतला हूं  मैं कोई पत्थर की मूरत तो नहीं?

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