किसी को भनक भी ना हुई मासूम दर्द से सिसकते देखा।
इतना मशगूर था पतंगबाजी में।
मरते को पानी ना पिला सका।
अपने शौक की माज़े में लिपटा।
उसे मिट्टी में भी न दबा सका।
क्या आज़ादी यू मनाई जाती है।
मंझे से परिंदों की गर्दन उडाई जाती है।
क्यो त्योहार के नाम पर बेजज़ुबानो को काटा जा रहा है।
क्या होगा तेरा इंसान जो ये मासूम निर्दोष ये सज़ा पा रहा है।
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