गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

अब बस कर जिन्दगी


अब बस कर जिन्दगी


अब बस कर जिन्दगी ओर यही बाकी था जहांन में,
क्या अब कैद भी होना होगा अपने ही मकान में,
बहुत कहता था अपनो में बैठने का वक़्त नही मिलता,
इतना जयाद अपनापन अब मुझे नही झिलता,
भूल गया हूं लेट लेट कर क्या होती है थकान में,
ओर कैद नही रह सकता अब अपने मकान में,
कुछ शर्म बाकी छटने लगी, है अब तो,
छोटी गलतिया भी कटखने लगी अब तो,
हर घर मे बस एक यही शोर हो रहा है ,
अपनो देख देख हर कोई बोर हो रहा है,
ऐसा लगता है जैसे हु बिन बुलाया मेहमान में
बस ओर नही रहे सकता हु अब अपने मकान मैं,


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