मंगलवार, 13 जुलाई 2021

शायरी वक्त नहीं ये देखने का


 वक्त नहीं ये देखने का कोन बुरा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।
खुदा ने मौका दीया है खुदको नेक बनाने का
फिर नही आएगा दिन कुछ कर जाने का।
देखलो एक दुसरे को ना देखो घूर घूर के
वक्त बुरा है ले ना जाए सब कुछ ओड के।
इस बुरे वक्त के बैरियों का अंजाम भी बुरा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।
नाराज़ नहीं है किसी बस भी कुछ डरा डरा है
मेंरे घर के सामने जो घर था वो खाली पड़ा है।
मुस्कुरा कर एक बुजुर्ग हाथ हिलाया करते थे
कुछ चहेरे दिखते नही जिन्हे अपना बताए करते थे।
वक्त की नज़ाकत को समझो ये मशवरा भी बूढ़ा है
अभी निकला हूं जिस तरफ वो मुकाम अधूरा है।


शुक्रवार, 25 जून 2021

मेरा बचपन

 मुझे मेरा बचपन दिख जाता है

जब भी तू मेरी गोद मैं आता है

भूल जाता हु हर गम ज़िंदगी का

जब तेरा चहेरा सामने आता है


बुधवार, 23 जून 2021

अपनो ने तो देनदारों को भी


 अपनो ने तो देनदारो को भी हरा दिया

प्यार से खिलाएं निवाले भी गिनवा दिया


गैरो की गिनती अभ अपनो में करने लगा हूं

वह है जिन्होंने अपनो को जानना सीखा दिया


क्या फर्क पड़ता है कोन सही कोन गलत

जिसको जो करना है पहले ही दिल को सीखा दिया


जिनको समझा था ताकत दुनियां से लड़ने की

उन्होने ही आज मुझे कमज़ोर बना दिया


अपनी अपनी आय्यासियो का हिआब कारिए जनाब

अपने तो दस्तरखान पर भी हिसाब बना दिया


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