मै चिर हिमालय आती हूं चट्टानों से टकराती हूं
निकली शिव के केषों से पावन हूं हरी हरी के चरणों से
किसी जगह भी मेरी बूंद गिरे उसको अमृत कर जाती हूं,
सायद मुझको तुम भूल गए मै गंगा मां कहलाती हूं,
क्यों करते हो अपमान मेरा बचपन मे क्यों था मान मेरा,
मदिरा के सेवन कर कर के क्यों करते हो स्नान मेरा
क्यों ढोंग सनातन का करके मुझको अछूत कर जाते हो,
सयाद तुम सब ये भूल गए मुझे गंगे मा क्यों बुलाते हो,
मुझ में नहाए फिर पाप करे, क्यो बेटी का अपमान करे
गांगा जल जैसी पावन कन्याओं का ना सम्मान करे,
क्यों नोच नोच कर फेंक रहे नन्हे से जिगर के टुकड़ों को,
बेबस मा भी अब तक रही उन हेवानो के मुखड़ों को,
सुन लो गंगा क्या केहेति है , बस कर पगले इन्सान सुन,
म त कहां कर माता मुझको तू बन रहा हेवान रे सुन
घर बैठे आपने माता पिता का, बस करले तू सम्मान रे सुन,
उन्मेही गौरी शंकर जिनको में शीश झुकाती हूं,
तुम याद रखो मेरे लाल मुझे में ही गंगा मां कहलाती हूं,
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