कमाल का हिसाब है दुनिया का जनाब।
कभी माना नहीं करती मगर काम भी नहीं आती।
कहने को सब तेरा है मेरे यार पर दे नहीं पाती।
उम्मीद क्या करू इस लाचार दुनिया से।
जो खुद किसी सहरे भी ना चल नहीं पाती।
नजने क्यों भेजता है इस जमाने ख़ुदा सताने को।
जहां रिश्तों की कदर नहीं इस जमाने को।
जिसे प्यार नहीं अपनो की कदर नहीं मेरे प्यारे।
वो फिर क्यों इज्ज़त देगा वोह तुझ बेगाने को।
कतपुती बाना कर भेजा है और भेष भी जोकर का।
जिन्दगी भर किरदार निभान है तुझे नोकर का।
एहेसान नहीं करे गा कोई तरसा नहीं खयेगा।
हाथ से ढक लें थाली कोई छीन कर रोटी ले जायेगा।
कमाल का हिसाब है दुनिया का जनाब ।
कभी मना नहीं करती मगर काम भी नहीं आती।
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