वक़्त का क्या वो किसी का भी हो जाये
करता हु बन्दगी तेरी ही करता रहुगा मोहन
बेशक चाहे ज़माना वक़्त के साथ बदल जाये
ये ज़िन्दगी तेरी है तेरे दर पर पड़ा हु मालिक
चाहे अब तू उठाले या फिर ठोकर लगाये,
गुनाहगार हु पर तेरीे सतरंज का ही प्यादा हु
तेरे हाथ मे मेरी डोर है या उड़ा दे या लुटा दे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें