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शनिवार, 23 मई 2020
सत्य कथा, गोवर्धन यात्रा
बात कुछ साल पुरानी है, मैं ओर मेरा दोस्त गोवर्धन गए थे परिक्रमा लगाने , हम जब वह पहुचे रात्रि 9 सड़े 9 बजे होंगे हमने विश्राम भोजन किया जूते चप्पल जमा करवाये करवाये ओर राधे राधे बोलकर परिक्रमा शुरू कर दी, मन आती प्रशन था, हल्की हल्की ठंड थी, ओर हम राधे राधे बोल कर चले जा रहे थे, गांव से जब हम जंगल की तरफ चलने लगे तो अहसास सा हुआ , सायद हम ही परिक्रमा करने आये है, क्योकि रात ज्यादा हो गयी थी , ओर दूर दूर तक कोई दिखी नही दे रहा था, पर हम दोनों चले जा रहे है , ओर राधे राधे बोले जा रहे थे , थकान हो गयी चलते चलते पर पैर रुकने का नाम नही लेते, मन मे एक अभिमान सा उत्पन हो राहा था, हमसे किसी ने कहा था , परिक्रमा में इस समय कोई नही जाता , क्योंकि ये अंधेरा पाक चल रहा है, मैन सोच सायद वकेहि हम ही दोनों आये है,मैं अपने मित्र से कहा ,भाई इस बार परिक्रमा में तो कोई भी ना दिखाई दे रहा है, मित्र ने कहा है यार,ना आगे दृर दृर तक कोई है ना पीछे कोई मिला,हम लगभग पहली परिक्रमा करने ही वाले थे,क्योकि गोवर्धन पर्वत दिखने लगे थे, मेने कहा लगता है आज हम ही आये है और कोई नही है, ओर॒ कहा गोवर्धन बाबा खुस होंगे बड़े पक्के भगत है, तबी राधे राधे बोलती एक टोली दिखाई दे गई जो पीछे से बड़ी जार से चली आरही थी, ढोलक मजीरे बज रहे हे ,ओर श्री राधे राधे का गुणगान हो रहा था, मन मे आवाज सु कर एक अलौकिक शक्ति उत्पन हुई मानो जैसे,बिहारी जी ने कोई सहियोगी भेजे हो,ये अद्भुत नज़र देख कर सारा दोष दूर हो गया, ओर पता नही कब रास्ता काट गया और थकान भी गायब हो गई, हमने बाबा के दर्शन किये,श्री गोवर्धन बाबा से छमा माँगीओर राधा कुंड की परिक्रमा सुरु की,भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों को भटकने नही देते ओर अपने भक्तों को दोष से सदा दूर रखते हैं ।
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