रविवार, 9 फ़रवरी 2020

लड़ते लड़ते थक कर चूर हो गया

लड़ते लड़ते थक कर चूर हो गया मैं
खोद कर कर मिट्टी उसमे खुद ही सो गया में
किया इंतज़ार बहुत,कोई न आया हमदर्द मेरा
खुद ही रोया अपने हाले दिल पर,
ओर बस दफन हो गया मैं,

कभी ना सोचा था हाल ये होगा मेरा
एक डाल से टूटा हुआ फूल हो गया मैं
पैरो तले जब कुचला गया अक्ष मेरा
फिर  उगने की तमन्ना से दूर होगया मैं

ये देख कर नज़ारा रूठ गया रब भी मेरा
जिस पर ग़ुरूर करताक्या यही बस तेरा
तेरी देख कर तकदीर ,आज खुद भी रो गया मैं
चल हाथ पकड़ मेरा,तेरा मुरीद हो गया मैं,

ना मेहेर ना रहम

ना मेहेर ना रहम ना मरहम तमन्ना है ,
मिटा दे सख्सियत मेरी जो तिरी शान
 में  गुस्ताख हु,?

रिश्ते निभाना

मजबूरियों से लड़कर रिश्तों को समेटा है,
कौन कहता है मुझे रिश्तें निभाने नहीं आते।

दर्द ता-उम्र

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले।

एक रास्ता ये भी है


    एक रास्ता ये भी है  को पाने का,
सीख लो तुम भी हुनर हाँ में हाँ मिलाने का।

हम जुकते क्यो है

हम झुकते हैं क्‍योंकि हमें रिश्‍ते निभाने का शौक है,
वरना गलत तो हम कल भी नहीं थे और आज भी नहीं हैं।

हिचकी

आज कल हिचकी नही आती मुझे ,
श्याद सब सोचते है में हु या  नही ,?

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